बेटियों पर चर्चा हो /ग़ज़ल
अगर कहीं भी बंधु, चिरागों पर चर्चा हो
भव-भूतल के बिसरे कोनों पर चर्चा हो
व्यर्थ विलाप, निराशा, रुदन, विसर्जित करके
लक्ष्य-साधना, कर्म, हौसलों पर चर्चा हो
सुमन सभी, खुश-रंग सुरभि, देते बगिया को
नहीं ज़रूरी, सिर्फ गुलाबों पर चर्चा हो
नाम हमारा भव में, चर्चित हो न हो मगर
चाह, कलम के, अमृत-भावों पर चर्चा हो
सार जहाँ हो, ज्ञान-सिंधु की बूँद-बूँद में
ऐसी सरल, सुभाष्य किताबों पर चर्चा हो
छोड़ो भी, अब नीरस जीवन का नित रोना
रसमय, गीत, ग़ज़ल, कविताओं पर चर्चा हो
बेदम हो जब भूख, रोटियाँ घर-घर पहुँचें
तभी आसमाँ, चाँद-सितारों पर चर्चा हो
सदी कह रही सुनो ‘कल्पना’ समय आ गया
बेटों से रुख मोड़, बेटियों पर चर्चा हो
— कल्पना रामानी
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब सृजन