कविता : ऐन केन प्रकेन करके
ऐन केन प्रकेन करके जैसे तैसे
विकास की ट्रेन को रोक दो
हमारा हाथ गंदा हो गया है
एक नया नकली हाथ खडा कर दो
जनता का क्या है
वह तो लोभी है
आदत है उसे झूठे वादों की
नकली हाथ को कहो
ढेर सारे झूठे वादे कर दो
हमसे रूठी जनता
नकली हाथ को ही वोट देगी
मगर कुछ भी हो जाये
देश की राजधानी में
विकास की आंधी आने से रोक दो
धीरे धीरे नकली मुखौटा बना
हमारा हाथ हमें मजबूत करेगा
जहाँ जहाँ हमने किया है भ्रष्टाचार
वहाँ वहाँ हमें मजबूत करेगा
रखना है उस महत्त्वाकांक्षी को अपने साथ
जिसने जी लगाकर कभी काम ना किया
मगर जी जी करके सबको बर्गला दिया……..
— संगीता कुमारी