कविता

कविता : एक राह पथरीली-सी

पथरीली-सी वो राह
जिस पर चलकर
घिस लिए थे उसने
जानबूझकर अपने तलवे
हर उठता क़दम
करता है पथरीलापन कम करने की कोशिश
ताकि सुरक्षित रहें
उसकी बेटियों के तलवे….

लहूलुहान तलवों की कहानी
जानती हैं बेटियाँ
तभी तो पथरीली राह पर
चलने से पहले
पहनती हैं
मज़बूत इरादों और हौसलौं की जूतियाँ
जिनकी दूर से आती
चरमराहट से
सहम जाते हैं
नुकीले पत्थर भी
और ओढ़ लेते हैं
नरमाई की दूब!!
वो जानते हैं
कि
अस्तित्व की इस लड़ाई में
बचाना है खुद को अगर
तो लेना ही पड़ेगा
दूब का सहारा
वरना
चर-चर करती मज़बूत जूतियों की ठोकरें
हिला कर रख देंगी वजूद…

ऐ नर्म दूब!!!!
धिक्कार है तुझ पर!!!
मत छुपा नुकीलेपन को
सामने आने दे
और
उसे उखाड़ फेंकने में
मदद कर ….
छुप तो नहीं पाएंगे वो देर तक
पर जब उखाड़े जाएंगे
तो याद रख
पहले तेरा वजूद खत्म किया जाएगा….

— शिवानी शर्मा, जयपुर

शिवानी शर्मा

नाम-शिवानी शिक्षा--B.Com. MBA. & Montessori diploma. जन्मदिन- 6 मार्च स्थान- जयपुर (राजस्थान) रूचि--लिखना,पढना,संगीत सुनना ,बाते करना ,घूमना और बच्चों के साथ खेलना। परिचय -झीलों की नगरी उदयपुर में जन्म लिया और बचपन बिताया ! पहले पिताजी की और फिर पति महोदय की नौकरी ने कई शहरों में - उदयपुर, अलवर,जयपुर, बांसवाड़ा, इन्दौर और अभी अजमेर, प्रवास के सुअवसर प्रदान किये। 1990 से आकाशवाणी से जुड़ी रही हूं जहाँ मेरे लिखने और बोलते रहने का शौक पूरा होता रहा है। अब दूरदर्शन से भी जुड़ गयी हूं और काव्य गोष्ठियों का हिस्सा बन रही हूं। अच्छा साहित्य पढ़ने के शौक ने छात्र जीवन में ही हाथ मे कलम थमा दी थी और अभी भी सीख रही हूं मन की बात कहना! विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाओं को स्थान मिल रहा है जिनमें "राजस्थान पत्रिका " दैनिक भास्कर व "अटूट बंधन " "मंडी टुडे" "सारा सच" "लोक जंग" आदि भी शामिल हैं । कुछ काव्य संग्रहों का संपादन, मंच संचालन भी कार्यानुभव में शामिल है। "अजमेर पोएट्स कलेक्टिव" संस्था की सह-संस्थापक भी हूं। "साहित्य गौरव" सम्मान से सम्मानित जो भी मिला है जीवन से,समाज से,उसमें अपने अनुभव और एहसास पिरो कर वापस कर देती है मेरी कलम , जिसे आप कविता/कहानी कहते हैं। ........ शिवानी जैन शर्मा

One thought on “कविता : एक राह पथरीली-सी

  • अर्जुन सिंह नेगी

    शिवानी जी सुन्दर कविता के लिए बधाई

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