दोहा मुक्तक
स्वाति बूँद मोती बने , कंचन बने शरीर
बूँद बूँद सागर भरे , यति गति संग समीर
रहा कभी टेथीज जो पड़ा हिमालय नाम
शब्द बूँद महिमा अमित -जनजीवन जस नीर
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
स्वाति बूँद मोती बने , कंचन बने शरीर
बूँद बूँद सागर भरे , यति गति संग समीर
रहा कभी टेथीज जो पड़ा हिमालय नाम
शब्द बूँद महिमा अमित -जनजीवन जस नीर
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’