कविता : रुक जाओ ना छोड़ के जाओ
रुक जाओ ना छोड़ के जाओ
अपने बच्चों को
अपनी पत्नि को अकेले
सात फेरे लिये हैं तुमने
अग्नि के सामने
कसम खायी हैं जीवनभर
निभाने का साथ
जोड़ी तो बनाते हैं भगवान
और जुड़ जाते हैं रिश्ते
पहनाकर मंगलसूत्र
और सिंदूर से भरकर मांग
सात वचन दिये हैं तुमने
अग्नि के सामने
बंधन जोड़ा हैं तुमने
सात फेरो के साथ
छोड़ बाबुल का आँगन
जो आयी तुम्हारे संग
कुछ गलतफेमियो के कारण
जा रहे हो छोड़ उसे
रुको ना जाओ छोड़ के इन्हें
इन बच्चों को कौन देगा
पिता का प्यार
ना छोड़ के जाओ पत्नि को अपनी
जो करती हैं तुमसे इतना प्यार
रुक जाओ ना छोड़ के जाओ
बाद में पछतावा होगा
जब जान जाओगे हकीकत
सात जन्मों का रिश्ता
एक पल में ना तोड़कर जाओ
रुक जाओ ना छोड़कर जाओ।
— शिवेश अग्रवाल