मुक्तक : पिताजी
पिताजी अपनी मजबूरियाँ कभी न करते हैं बयान
हमें सुख की छाँव देते हैं खुद बनके आसमान
हमारी खुशियों के लिए वे खुद को भी बेच देते है
फिर भी नहीं जताते हमपे कभी अपना एहसान
— दीपिका कुमारी दीप्ति
पिताजी अपनी मजबूरियाँ कभी न करते हैं बयान
हमें सुख की छाँव देते हैं खुद बनके आसमान
हमारी खुशियों के लिए वे खुद को भी बेच देते है
फिर भी नहीं जताते हमपे कभी अपना एहसान
— दीपिका कुमारी दीप्ति
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प्रिय सखी दीपिका जी, अति सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.