मुक्तक/दोहा

मुक्तक : पिताजी

पिताजी अपनी मजबूरियाँ कभी न करते हैं बयान
हमें सुख की छाँव देते हैं खुद बनके आसमान
हमारी खुशियों के लिए वे खुद को भी बेच देते है
फिर भी नहीं जताते हमपे कभी अपना एहसान

दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “मुक्तक : पिताजी

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी दीपिका जी, अति सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.

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