लघुकथा- माँ
हरिया ने घास का पुला बॉस पर जमाते हुए चेताया, “रामू ! तू उस छेद को ढक दे. उस से धूप आ सकती है.”
तभी रमिया बोली, “केशु के बापू ! जरा सम्हल कर. उधर का बाँस हल्का है.”
सुन कर कमलू हंस दिया, “ भोजाई ! बड़ी चिंता है.”
“चिंता तो करनी पड़े है. इस घर के ये दो ही प्राणी है जो घर चलाते है.”
“सही कहती हो भोजाई जी. हम तो हम्माल हैं.” रामू कुछ ओर कहता कि हरिया बोल पड़ा, “अरे ओ रामू, हम सब को उसी ने पाला है. इसलिए उस के घर की चिंता करो. उस का यह घर भी जोरदार होना चाहिए.”
“तो यह घर आप लोग, अपने लिए नहीं बना रहे हो ?” तभी सड़क पर निकलते हुए शहरी बाबू ने पूछा.
“यह घर तो जच्चा-बच्चा के लिए तैयार हो रहा है बाबू.” कहते हुए हरिया ने हाथ का पुला बाँस के नीचे जमा दिया.
“जच्चा-बच्चा के लिए?” शहरी बाबू रुक गए.
“यह हमारी गोऊमाता रधिया के लिए तैयार हो रहा है बाबू जी .”