ग़ज़ल
चला है आज ये अंधड़ शज़र को तोड़ डालेगा
कहीं कोई हुआ बेघर सफ़र को मोड़ डालेगा
किसी इंसान की फितरत नही कोई बदल सकता
अगर खुद पे हो काबू तो बुराई छोड़ डालेगा
समझ कर शान अपनी जो लगाया जाम होठों से,
ग़रीबों को ग़रीबी का ये खंजर तोड़ डालेगा
मुकद्दर आजमाने में गुजारी ज़िन्दगी सारी
मुहब्बत नाम का पंछी हमें झंझोड़ डालेगा।
उजालों को किया बन्दी अँधेरों की सियासत ने
सवेरे क्रांति का सूरज तमस को फोड़ डालेगा।
__________गुंजन अग्रवाल “गूँज”