घनाक्षरी : अंग्रेजी को आग दो
निजी शिक्षण संस्थान, धड़ल्ले से सीना तान,
खोल रखे हैं दुकान, अंग्रेजी के नाम की।
देश की जमीं में आज, अंग्रेजी की डाल खाद,
खेती जो होती आबाद, भला किस काम की?
अंग्रेजी की ये पढ़ाई, प्रतिष्ठा की है लड़ाई,
लोगों की है ये बड़ाई, आज इस देश में।
गोरे गए देश छोड़, पीछे छोड़ा हिन्दी चोर,
मैकाले का स्वप्न घोर, अंग्रेजी के वेश में।।
शिक्षण से विमुख हैं, विद्यार्थी से बेरुख हैं,
पैसा जिनकी भूख है, अंग्रेजी के संस्थान।
नकल को बढ़ावा दे, अकल को छलावा दे,
शकल को दिखावा दे, अंग्रेजी कद्रदान।।
शिक्षा का पतन भारी, डिग्री की ही मारामारी,
अंग्रेजी की मांग भारी, छायी चहुँ ओर है।
संस्कृति लुट रही है, हिन्दी आज रो रही है,
संताने क्यों सो रही है, स्थिति घनघोर है।।
देश का विकाश चाहो, खोया आत्म बल चाहो,
निज भाषा शिक्षा चाहो, विदेशी को त्याग दो।
स्वाभिमानी वेश के, धनी अपनी ठेस के,
नवयुवकों देश के, अंग्रेजी को आग दो।।
— बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया