ग़ज़ल
सारी सारी रात-जग जिन के लिए
पूछते वे जागरण किन के लिए |1|
चाँद तारों तो झुले हैं रात में
एक सूरज को रखा दिन के लिए |२|
आसान नहीं भूलना यूँ भूत को
आज तक तो मोह है इन के लिए |३|
रात भर आँसू कभी थमती नहीं
अश्रु जल यूँ लुडकते किन के लिए|४ |
वो सुखी हैं या दुखी किन को पता
फूल जंगल में खिले किन के लिए |५|
जानते थे हम जुदा होंगे कभी
क्या जतन करते कभी इन के लिए |६|
अब इन्हें संसार में आना नहीं
कौन रोये इस जहाँ इन के लिए |७|
वो कभी पीड़ा समझना चाहती
क्लेश हम पीते गए जिनके लिए |८|
कालीपद ‘प्रसाद’