इसे कहते हैं प्रेम
कभी-कभी मन सोचता है
कि कहीं
धरा और अम्बर की
चिर से अनादि काल तक की
पावन प्रेम कथा
दूरियों की वजह से ही तो
नहीं टिकी हुई हैं
कि शायद इसी कारण
झगड़े नहीं होते हैं
कभी अम्बर रो देता है
तब
पिघल जाती है धरती
एक-दूसरे को दिन रैन
एकटक निहारते हुए
जी लेते हैं
इसे कहते हैं
प्रेम
पावन
निर्मल
निः स्वार्थ
©किरण सिंह
सुन्दर कविता के लिए बधाई
हृदय से आभार
प्रिय सखी किरण जी, प्रेम से संबंधित अति सुंदर व सार्थक विचारों के लिए आभार.
हृदय से आभार सखि