गीत : मैं खुशबू …
मैं खुशबू हूँ उनकी समझो
वो हैं मेरे इत्र सरीखे
सदा भला करते हैं मेरा
लगते मुझको मित्र सरीखे…
जब भी पूछा मैंने उनसे,
क्यूँ देते हो मेरा साथ
तनिक मुस्करा जाते फिर,
रख लेते हैं मुख पर हाथ
ये कैसी अबूझ पहेली,
वो लगते हैं चित्र सरीखे |
ये है कैसी चाह, आह जो,
मुख पर उनके कभी न आती
मौन तपस्या योगी जैसी,
विचलित, मुझको कर जाती
मुझे बचाने हर मौसम में,
तन जाते हैं छत्र सरीखे |
रिश्ते का कोई नाम नहीं है,
निभा रहे वो कैसा रिश्ता
दिखने में साधारण मानव,
पर लगता वो मुझे फरिश्ता
हर सबाल का उत्तर जैसे,
लगते हैं वो सूत्र सरीखे |
सदा भला करते हैं मेरा,
लगते मुझको मित्र सरीखे …
— विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’