प्रेरक व सकारात्मक शब्दों का जादू
खुशमिजाज स्वभाव वालीं प्रज्ञा घिल्डियाल का पहला प्रेम योग था और इसी को उन्होंने बतौर करियर अपनाया. योग और मेडिटेशन में कई तरह के कोर्स करने के बाद वह दिल्ली के मयूर विहार में अपना योग स्टूडियो चला रही थीं, लेकिन 22 साल की उम्र में एक हादसे ने प्रज्ञा को हमेशा के लिए वील चेयर का मोहताज कर दिया. प्रज्ञा ने हार नहीं मानी. इस हादसे के बाद प्रज्ञा पहली बार वह दोस्तों के साथ आउटिंग के लिए वील चेयर पर निकलीं. उन्होंने देखा कि लोग अजीब निगाहों से देख रहे थे. प्रज्ञा को यह देखकर काफी खराब लगा, लेकिन तभी एक बुजुर्ग ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कान में धीरे से कहा कि बेटी, आप बहुत मजबूत हो कि इस हालत में भी दुनिया का सामना करने के लिए बाहर आई हो. ये शब्द जादू कर गए और प्रज्ञा जिंदगी को लेकर बेहर पॉजिटिव हो गईं. इन्हीं प्रेरक व सकारात्मक शब्दों के जादू से आज वह वसंत कुंज स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में बतौर फिजिकल ट्रेनर और योग इंस्ट्रक्टर काम कर रही हैं. वह सफल एथलीट हैं और योग व काउंसिलिंग के जरिए दूसरों की जिंदगी भी रोशन कर रही हैं.
लीला बहन , प्रेरक लघु कथा बहुत पसंद आई . इस में एक बात मेरे ज़हन में आई है किः हम लोग डिसेबल पर्सन के प्रति अजीब सी सोच रखते हैं ,बिदेश में रहते हुए आप को तो पता ही है किः यहाँ डिसेबल लोगों के लिए लोगों के दिलों में अछि भावना होती है और हर दम मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं . डिसेबल लोगों के लिए स्पेशल कार पार्किंग स्पेसस्ज़ होते हैं और हर जगह उन के लिए सहुलतें होती हैं . प्रज्ञय की बात से जाहर होता है की डिसेबल लोग हर तरह जिंदगी में सबी तरह के काम कर सकते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. हमारे बहुत-से ब्लॉग्स ऐसे लोगों के साहस और जज़्बे को उजागर करते हैं. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.