फूल भी चीखता है
फूल चीख चीख चिल्लाय
सब जब तोड़ मंदिर में चढ़ाए
फूल डाली झुक झुक जाय
मुन्नी को देख रोज मुस्काए
मुन्नी तोड़ कनेर घर लाय
दादी भरी अंजली देख हर्षाय
मम्मा मुन्नी को खूब समझाए
जितनी जरूरत हो उतना ही लाय
मुन्नी बात कहा कब मानय
मम्मा देख सब खिलौने देती छुपाय
मुन्नी चीख चीख चिल्लाय
रो रोकर पूरा घर सर पर उठाय
मम्मी तब अच्छे से समझाए
तुम्हें जैसे दुःख हुआ वैसे ही
फूल तोड़ने पर उस पौधे को हो जाय
मुन्नी को भलीभांति समझी आय
फिर कभी भूले से फूल ज्यादा नहीं लाय
— सविता मिश्रा
प्रिय सखी सविता जी, अति सुंदर व सार्थक विचारों के लिए आभार.
सादर नमस्ते …आभार आपका भी