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वेद मनुष्यों के ईश्वर प्रदत्त सनातन चक्षु हैं: डा. रघुवीर वेदालंकार

ओ३म्

 

श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौन्धा-देहरादून के वार्षिकोत्सव के प्रथम दिन 3 जून, 2016 को आयोजित अपरान्ह सत्र में वेद वेदांग सम्मेलन को डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. धनंजय और सम्मेलन के अध्यक्ष स्वामी प्रवणानन्द जी ने सम्बोधित किया। उनके सम्बोधन का सार प्रस्तुत है।

 

डा. रघुवीर वेदालंकार, दिल्ली ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वामी दयानन्द जी ने देश को वेदों का पढ़ना सिखाया। देश व विश्व में वेदों का प्रचार व प्रसार स्वामी दयानन्द जी ने ही किया। आर्य विद्वान ने सन् 1869 में काशी में महर्षि दयानन्द के पौराणिक विद्वानों के साथ मूर्ति पूजा पर शास्त्रार्थ की चर्चा की और बताया कि पौराणिक विद्वान स्वामी विशुद्धानन्द ने अपने शिष्य पं. मोती लाल को वेदों को पढ़ने का परामर्श दिया था। डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि स्वामी दयानन्द जी के द्वारा वेदों का संस्कृत व हिन्दी दोनों भाषाओं में भाष्य किये जाने से देश विदेश में वेदों का प्रचार हुआ। उन्होंने कहा कि मुसलमानों की कुरआन की तरह हिन्दुओं की वेदों पर श्रद्धा थी। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर बताया कि स्वामी दयानन्द व उनके पूर्व सभी अच्छे व बुरे कार्य वा कर्मकाण्ड वेदों का नाम लेकर किये जाते थे। मनुस्मृति का उदाहरण देकर डा. रघुवीर जी ने कहा कि देवों व साधारण मनुष्यों का वेद ही ईश्वर प्रदत्त सनातन चक्षु है। उन्होंने कहा कि चक्षु किसी भी वस्तु को देखकर उसको साफ साफ बता देता है। उन्होंने आगे कहा कि ईश्वर को सभी लोग अपने अपने मत की मान्यताओं के अनुसार मानते हैं। डा. रघुवीर जी ने कहा कि कोई व्यक्ति यदि चैथे आसमान का पता जानता है तो बताये? उन्होंने ईश्वर व ईश्वर के बेटे की चर्चा की और कहा कि यह कोई नहीं बताता कि वह कहां हैं? उन्होंने कहा कि वेदपाठी ईश्वर का पता बता सकता है। आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने वेदमन्त्र वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्णम् तमसः परस्तात्।’ का उच्चारण कर कहा कि इस वेद मन्त्र के मुकाबले संसार की किसी पुस्तक में मन्त्र व विचार नहीं मिलेंगे। विद्वान वक्ता ने कहा कि संसार के सभी मनुष्यों का परमेश्वर एक है। ईश्वर को जानने के लिए हम सबको वेदों को पढ़ना व पढ़ाना चाहिये। आज सभी लोग वेदों को ज्ञान व विज्ञान की पुस्तक मानते हैं। वैदिक विद्वान ने आगे जोर देकर कहा कि ऋषि दयानन्द जी का वेदार्थ ही यथार्थ वेदार्थ है। वेद मनुष्यों को मनुष्यों की रक्षा करने का उपदेश देते हैं, इस रहस्य से भी विद्वान वक्ता ने श्रोताओं को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि वेद लोभ वा लालच न करने का भी उपदेश देते हैं। इसी के साथ उन्होंने अपने सम्बोधन को विराम दिया।

 

डा. रघुवीर जी के बाद गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी ने कहा कि आर्यसमाज का उद्देश्य केवल वेदों का प्रचार व प्रसार करना है। स्कूल व अस्पताल आदि बनाना आर्यसमाज का उद्देश्य व कार्य नहीं है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सभी आर्यसमाजों में संस्कृत पाठशालायें होनी चाहिये जिसमें सभी आयुवर्ग के लोगों को संस्कृत सिखाने व पढ़ाने की अच्छी व्यवस्था हो। उन्होंने आगे कहा कि सभी आर्यसमाजों में वेदों को पढ़ाने की भी व्यवस्था होनी चाहिये। आचार्य धनंजय ने कहा कि गुरुकुल का प्रत्येक ब्रह्मचारी जब वेदों का प्रचारक वा प्रवक्ता बनेगा तभी आर्यसमाज सफल होगा।

 

वेद वेदांग सम्मेलन सम्मेलन के समापन पर अध्यक्षीय भाषण में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती ने सबको गायत्री मन्त्र का पाठ कराया और कहा कि वेद-वेदांग के विषय में आपने डा. रघुवीर वेदालंकार, स्वामी श्रद्धानन्द और ब्रह्मचारी अजित कुमार की चर्चायें सुनी। ऋषि दयानन्द ने वेद के पढ़ने व पढ़ाने तथा सुनने व सुनाने को आर्यों का परम धर्म कहा है। पंच महायज्ञों की चर्चा कर स्वामी जी ने कहा कि सन्ध्या, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथि यज्ञ और बलिवैश्वदेव यज्ञ छोटे होने पर भी महायज्ञ हैं। स्वामी जी ने कहा कि वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। प्राचीन काल में मनुष्यों की बुद्धि की शक्ति तीव्र होती थी जिससे वह वेदों को सुन कर उसका अर्थ भी ग्रहण कर लेते थे। समय व्यतीत होने के साथ मनुष्यों की बुद्धि में न्यूनता आई। अतः वेदों की रक्षा के लिए व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष, शिक्षा व कल्प का अध्ययन किया जाने लगा। स्वामीजी ने वेदाध्ययन के लिए इन सभी वेदांग ग्रन्थों के अध्ययन की आवश्यकता बताई। स्वामीजी ने कहा कि 6 वेदांगों के बाद ऋषियों ने 6 उपांगों अर्थात् 6 दर्शन ग्रन्थों की रचना की। ऋषि दयानन्द ने भी वेदाध्ययन में सहायक व उपयोगी सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका तथा संस्कार विधि आदि ग्रन्थों की रचना कर वेदाध्ययन में अपना बहुमूल्य योगदान किया। स्वामीजी ने कहा कि जो व्यक्ति ऋषि के इन ग्रन्थों को पढ़ लेता है, वह वैदिक ज्ञान पढ़ लेता है। उन्होंने कहा कि यदि आप संस्कृत व्याकरण नहीं पढ़ सकते तो सत्यार्थ प्रकाश पढ़ो। सत्यार्थ प्रकाश के बाद संस्कार विधि को पढ़ो। यज्ञों का आधार संस्कार विधि है। स्वामीजी ने कहा कि यदि ऋषि दयानन्द केवल संस्कारविधि ही लिखते तो भी संसार का बहुत बड़ा उपकार होता। स्वामी जी ने विस्तार से ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका का महत्व बताया और इस ग्रन्थ की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस ग्रन्थ को बार-बार पढ़ना चाहिये। स्वामीजी ने पं. गुरुदत्त विद्यार्थी की चर्चा कर कहा कि उन्होंने 18 बार सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा था। उन्होंने आगे कहा कि सत्यार्थप्रकाश का पढ़ना एक प्रकार से वेद का पढ़ना है। इसी प्रकार संस्कारविधि और ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका को भी पूरी श्रद्धा से बार-बार पढ़ना चाहिये।

 

स्वामीजी ने कहा कि अंग्रेजी पढ़ा लिखा व्यक्ति अपने उदर की सेवा ही करता है व करेगा। वह अपने राष्ट्र की और आपकी सेवा नहीं करेगा। गुरुकुल का स्नातक अपने देश के बारे में सोचना है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी पढ़ा हुआ व्यक्ति केवल अपनी भौतिक उन्नति के बारे में सोचता है। स्वामी जी ने यह भी कहा कि अंग्रेजी पढ़ा व्यक्ति इंजीनियर बन कर भवन निर्माण के कामों में सीमेंट आदि की आवश्यकता से कम मात्रा मिलाकर अपने स्वार्थों की पूर्ति करता है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि यदि आप वेद और वेदांगों को नहीं पढ़ते तो यहां से सत्यार्थप्रकाश, संस्कारविधि और ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका को पढ़ने का संकल्प लेकर जायें। स्वामीजी ने श्रोताओं को सूचना दी की हरयाणा के श्री नन्दलाल जी इस उत्सव में एक वातानुकूलित बस व श्रद्धालु लेकर आयें हैं और उन्होंने गुरुकुल को इक्कीस हजार रूपये दान भी दिया है। कार्यक्रम के समापन पर गुरुकुल के मुख्य आचार्य धनंजय जी ने सावधान करते हुए कहा कि विदेशी लोग संस्कृत को अंग्रेजी भाषा के द्वारा पढ़ाने का षडयन्त्र कर रहे हैं। आचार्यजी ने कहा कि अंग्रेजी भाषा में चाचा, चाची, ताऊ, ताई, मौसा, मौसी, मामा व मामी, फूफा व बुआ आदि अनेकों सम्बन्धों को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं, वह संस्कृत का क्या भला करेंगे। इसी के साथ वेद वेदांग सम्मेलन व सायंकालीन सत्र समाप्त हुआ। रात्रिकालीन सत्र में भजनोपदेशकों ने भजनों की प्रस्तुतियां दी, प्रवचन आदि भी हुए। इस प्रकार प्रथम दिन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

 

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “वेद मनुष्यों के ईश्वर प्रदत्त सनातन चक्षु हैं: डा. रघुवीर वेदालंकार

  • मनमोहन भाई ,लेख अच्छा लगा . मेरा विचार है किः अंधविश्वास ही धर्म का नुक्सान कर रहा है . भगवान् गौड़ अल्ला कहाँ है, सब के अपने अपने गैस्स हैं .इस को आज तक कोई नहीं जान पाया .आज के ज़माने में रोजी रोटी और आगे बढ़ने की चाहत सही मानों में धार्मिक बनने नहीं देती . आज तो डिग्री कर लो, चांस लगे तो बिदेश जाओ, लिविंग स्टैण्डर्ड ऊंचा करो, ऐसी बातें धार्मिक बनने में बाधा बन रही हैं . नित नए कोर्स ,एक से एक बढ़ कर डिग्री लेने के लिए कोई धार्मिक ग्रन्थ पढने का समय कैसे निकाले, एक समस्य है . वेदों के ज़माने में ऐसे हालात नहीं थे . मेरी बड़ी लड़की मुझे बता रही थी कि उस की बेटी इतनी हुशिआर है कि वोह उस के सामने अनपढ़ लगती है . आज की जेनरेशन में कुछ युवा तो ग्रन्थ पढ़ सकते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि सबी नहीं .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए। आपकी बात बिल्कुल ठीक है। मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ। एक पक्ष यह भी है कि हमारे बच्चे धार्मिक ग्रन्थ नहीं पढ़ते परन्तु उनको हमे देखकर ही कामचलाऊ ज्ञान हो गया है। वह संध्या और हवन करना जानते हैं। उन्हें पता है कि माता पिता की सेवा व सम्मान करना चाहिए। विद्वान अतिथियों का सम्मान व सहायता करनी चाहिए। पशु पक्षियों के प्रति प्रेम, दया और करना का भाव रखना चाहिए क्योंकि अगले जन्म में हम भी उनकी जगह ले सकते हैं। अन्य मान्यताओं का भी उन्हें ज्ञान है। सादर।

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