गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

कुछ मुश्किलें कुछ मरहले
थामें उम्मीद के सिरे

बेचैन सी खलिश भी है
मन मगन वहीं फिरे

बेनाम सी वोह जुस्तजू
सारे उसी के तजकिरे

मुद्दतों के दिन हुये
हिज्र के दिन घिरे

बरस रहीं हैं आँखें यूँ
ज्यूँ बूँदें बादल से गिरें

मिसाल क्या मिले हमे
कहलायें हम तो सिरफिरे
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कि बावला होना पड़ता है रूह से जुड़ने के लिये …. !! शिप्रा

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]

2 thoughts on “गीतिका

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी शिप्रा जी, कि बावला होना पड़ता है रूह से जुड़ने के लिये. थोड़े-से शब्दों में जीवन का अति सुंदर फलसफ़ा, इस तीव्रगतिशील समय में भी आपकी नायाब लघु रचनाओं का अर्थ समझने के लिए रुकना अच्छा लगता है. अति सुंदर व सार्थक विचारों के लिए आभार.

    • शिप्रा खरे

      लीला दी आपका मेरी पोस्ट पर आना मुझे बहुत अच्छा लगता है …साथ ही आपकी सार्थक टिप्पणियाँ मन प्रसन्न कर जाती हैं…
      हृदय से आभार और धन्यवाद दी

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