गीतिका
कुछ मुश्किलें कुछ मरहले
थामें उम्मीद के सिरे
बेचैन सी खलिश भी है
मन मगन वहीं फिरे
बेनाम सी वोह जुस्तजू
सारे उसी के तजकिरे
मुद्दतों के दिन हुये
हिज्र के दिन घिरे
बरस रहीं हैं आँखें यूँ
ज्यूँ बूँदें बादल से गिरें
मिसाल क्या मिले हमे
कहलायें हम तो सिरफिरे
कि बावला होना पड़ता है रूह से जुड़ने के लिये …. !! शिप्रा
प्रिय सखी शिप्रा जी, कि बावला होना पड़ता है रूह से जुड़ने के लिये. थोड़े-से शब्दों में जीवन का अति सुंदर फलसफ़ा, इस तीव्रगतिशील समय में भी आपकी नायाब लघु रचनाओं का अर्थ समझने के लिए रुकना अच्छा लगता है. अति सुंदर व सार्थक विचारों के लिए आभार.
लीला दी आपका मेरी पोस्ट पर आना मुझे बहुत अच्छा लगता है …साथ ही आपकी सार्थक टिप्पणियाँ मन प्रसन्न कर जाती हैं…
हृदय से आभार और धन्यवाद दी