कविता

धरा

मैं धरती हूँ मात तुम्हारी,
गहना मेरा हरियाली ।
क्यों बालक होकर भी खुद,
मां का श्रंगार मिटाते हो ।अनाज उगाकर ह्रदय मेरे,
घर में खुशहाली लाते हो ।
जीवन बिन ब्रक्ष नहीं होगा,
खुद लाते हो बदहाली ।
अगर चाहो सुंदर हो जीवन
ब्रक्षारोपण यहाँ करो ।
ब्रक्ष नहीं होगे जो यहाँ पर,
धरा बने विष की प्याली ।
जब भान तुम्हें इस पल का हो
,पछतावा ही पाओगे ।
धरती बंजर होगी तब तो,
खाली हाथ रह जाओगे ।

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com