कविता

“गज़ल”

बेढंगी उँगली को लिखना सिखाया आप ने

ककहरे की बारहखड़ी भी बताया आप ने

अब कलम चलने लगी है कागजों पर बिनरुके

कह तजुरबे की कहानी भी सुनाया आप ने॥

शब्द है जुडने लगे मिले अक्षरों के पारखी

बहस करते तोतले भाषण सुनाया आप ने॥

आप तो उस्ताद है स्वरों सुधा आलाप के

टूटकर विखरे तरन्नुम भी उठाया आप ने॥

वक्त के हालात पर बदली गई हैं बोलियां

है हकिकत लाजिमी अवगुण छिपाया आप ने॥

कह दिया क्या कलम ने जो उठी हैं उँगलियाँ

लिख दिया मंदिर व मस्जिद भी लिखाया आप ने॥

अब भला किस दोष पे जलने लगी है बाँतियाँ

बह रही है साथ लौ चलना सिखाया आप ने॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ