दोस्त सब अपने पुरसने छोड…
दोस्त सब अपने पुराने छोड आया हूं।
ज़िन्दगी के सब तराने छोड आया हूं॥
गाँव का तालाब पीपल की घनी छांया।
वो गुलाबी से पसाने छोड आया हूं॥
जो बसी थी मन कभी भगवान की तरहा।
मैं उसे कर के बहाने छोड आया हूं॥
सोचता हूँ अब यही क्या थी खता उनकी।
क्यूं सभी रिश्ते पुराने छोड आया हूं॥
अब मुझे शायद मिले अपना जहां कोई।
मैं वहाँ के सब ठिकाने छोड आया हूं॥
सतीश बंसल