मत्तगयन्द सवैया =वार्णिक छन्द
सात भगण अंत में दो गुरू
मापनी =२११ २११ २११ २११ =२११ २११ २११ २२= २३
भोग भगा मन योग जगा छवि, शाम सवेर सुहाय रही है /
प्रीति भरी सजनी अँखियाँ लखि, कन्त प्रवीर बुलाय रही है/
नींद भयी अब दूर सखे मन , संत महंत सजाय रही है/
राग विराग प्रकाशित हो कवि ,राज सखे मन भाय रही है/
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
२५/०६/२०१६