रास्ते अंजान से है हमसफ़र कोई नही
रास्ते अंजान से है हमसफ़र कोई नही।
भीड है काफी यहाँ अपना मगर कोई नही॥
देख कर उसको लगा की थी बहुत बेचैन वो।
यूं लगा सारे जहाँ में उस का घर कोई नही॥
घात करते है सदा जो दूसरो के साथ में।
बावफ़ा उनको मिलेगा उम्र भर कोई नही॥
डर अगर कोई मुझे है तो खुदा का है फ़खत।
इस जहाँ के जालिमों से मुझ को डर कोई नही॥
ढूंढते हो क्यूं खुदा को मस्जिदो में दोस्तों।
झाँकिये दिल के सिवा उसका तो घर कोई नही॥
याद में तेरी जहाँ भटका नही मैं दर बदर।
अब बचा मेरी नज़र में वो शहर कोई नही॥
मुद्दतें बीती मगर ये सिलसिला जारी रहा।
बात जब तेरी न हो बीता पहर कोई नही॥
सतीश बंसल