अपने होने के हर एक सच
अपने होने के हर एक सच से मुकरना है अभी
ज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभी
तेरे आने से सुकूं मिल तो गया है लेकिन
सामने बैठ ज़रा मुझको संवरना है अभी
ज़ख्म छेड़ेंगे मेरे बारहा पुर्सिश वाले
ज़ख्म की हद से अधिक दर्द उभरना है अभी
निचोड़ के मेरी पलक को दर्द कहता है
मकीने-दिल हूँ मैं और दिल में उतरना है अभी
आज उसने किया है फिर से वफ़ा का वादा
इम्तिहानों से मुझे और गुजरना है अभी
बाद मुद्दत के मिले तुम तो मुझे याद आया
ज़ख्म ऐसे हैं कई जिनको कि भरना है अभी
हुआ है ख़त्म जहाँ पे सफ़र ‘नदीश’ तेरा
वो गाँव दर्द का है और ठहरना है अभी
© लोकेश नदीश
सुन्दर