कविता

मायाजाल

सियासत में बेठे , शतरंज खेल रहे लोग
मोहरो की तरह एक दूसरे को पीट रहे लोग !
दरन्दगी की हद से गुजर रहे लोग
जाने कौन सी इच्छा पूर्ति कर रहे लोग !
जान का कोई मोल नहीं , सोच नाच रहे लोग
खून का व्यापार करने वाले , जेब भर रहे लोग !
झगड़े , हमले , आंतक भारी है चारो और
हिन्दू  , मुस्लिम की जात नहीं , पिसते जा रहे आम लोग
सुनो ,
मेरे वतन में हिन्दू भी बहुत , मुस्लिम भी बहुत है —
बस इंसानो की इंसानियत से खाली है लोग !

डॉली अग्रवाल

डॉली अग्रवाल

पता - गुड़गांव ईमेल - dollyaggarwal76@gmail. com

One thought on “मायाजाल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

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