जगत का प्रलय किस प्रकार होता है?
ओ३म्
महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम संस्करण में जगत की प्रलय का प्रकार लिखा है। वह लिखते हैं कि जिस प्रकार सूक्ष्म पदार्थों से स्थूल की रचना होती है, उसी प्रकार से जगत् का प्रलय भी (विपरीत क्रम से) होता है। जिससे जो उत्पन्न होता है वह सूक्ष्म होके अपने कारण में मिलता है। जैसे कि पृथिवी और जल आदि के परमाणुओं से यह स्थूल पृथिवी बनी है। इनके परमाणुओं का जब वियोग होता है तब स्थूल पृथिवी नष्ट हो जाती है। वैसे ही सब पदार्थो का प्रलय जानना चाहिए। आकाश से पृथिवी पंच गुणी है। जब एक गुणीय घटेगी तब जल रूप हो जायेगी। जल और पृथिवी जब एक-एक गुण घटेंगे, तब वे अग्नि रूप हो जावेंगे। जब वे तीनों एक-एक गुने घटेंगें तब वायु रूप हो जायेंगे। जब वे भिन्न-भिन्न हो जायेंगे, तब सब परमाणुरूप हो जायेंगे।
परमाणु की जब सूक्ष्म अवस्था होगी, तब सब आकाश रूप हो जायेंगे और जब आकाश की भी सूक्ष्म अवस्था होगी, तब प्रकृति रूप हो जायगा। जब प्रकृति लय होती है तब सब जगत् का कारण (प्रकृति) और परमेश्वर के अनन्त सत्य सामथ्र्य वाला एक अद्वितीय परमेश्वर ही रहेगा और कोई नहीं। सो यह सब आकाश आदि जगत् परमेश्वर के सामने कैसा है कि जैसा आकाश के सामने एक अणु भी नहीं। इससे (सृष्टि की) उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय से किसी प्रकार का दोष परमेश्वर में नहीं आता। इससे सब सज्जन लोगों को ऐसा ही मानना उचित है।
महर्षि दयानन्द के द्वारा ब्रह्माण्ड की प्रलय के इस वर्णन से उन की बौद्धिक विलक्षण क्षमता के साथ उनकी वैज्ञानिक सोच के भी दर्शन होते हैं जो उनके पूर्ववर्तीं किसी धर्मप्रचारक में दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। यदि उनके पूर्ववर्तियों में यह गुण रहे होते तो देश इतना पतित व दुर्दशा को प्राप्त न हुआ होता।
-मनमोहन कुमार आर्य