लघुकथा : पैंतरा
बरामदे में लगे कैक्टस के पौधों को काटते देख रामलाल बोले, “बेटा इतने प्यार से लगाया था तुने। कहाँ-कहाँ से तो खोज कर लाया था दुर्लभ प्रजाति। अब क्यों काटकर फेंक रहा?? तू तो कहता था कि इन कैक्टस में सुंदर फूल उगते हैं? वो खूबसूरत फूल मैं भी देखना चाहता था।”
“हाँ बाबूजी, कहता था, पर फूल आने में समय लगता है परन्तु कांटे साथ-साथ ही रहते। आज नष्ट कर दूंगा इनको!”
“मगर क्यों बेटा?”
“क्योंकि बाबूजी, आपके पोते को इन कैक्टस के कांटो से चोट पहुँची है।”
“ओह, तब तो समाप्त ही कर दो! पर बेटा इसने अंदर तक जड़ पकड़ लिया है! ऊपर से काटने से कोई फायदा नही!”
“तो फिर क्या करूँ??”
“इसके लिए पूरी की पूरी मिट्टी बदलनी पड़ेंगी। और तो और इन्हें जहाँ कहीं भी फेंकोगे ये वहीँ जड़ जमा लेंगी।”
“मतलब इनसे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं?”
“है क्यों नहीं! बस धूप में तपा दो।”