हाइकु/सेदोका

हायकु

१..मिट्टी घट थे
निखारा होता गर
आसमा छूते|

२..कृतज्ञ बनें
मानों तो मात-पिता
गुरु से बड़े|

३…गुस्सा काहे का
उपजा दूजे सुख
मन का भ्रम|

४….प्यार से भेजा
गुलदस्ता दर्द का
दुआ के साथ |

५…दर्द अपार
अपना दूर कहीं
इच्छा मिलन|

६…सामंजस्य से
चले जीवन पथ
बने जीवन|

७…गप्प मार ही
समाज सुधारक
बने विकट|

८..दोषी औरत
ठहराते आदमी
कमी छुपाते |
९..तगड़ी धूप
सहना नियति हैं
नारी जीवन|

१०..धूप प्रखर
निखरता जीवन
साँझ पहर|..सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|