मौसम का तराना
आज की मेरी कविता
मौसम का तराना
क्या कहूँ कैसा जादू है इस कदर।
मौसम आज दिल को लुभाने लगा॥
सूर्यदेव की मिजाज देखिए जनाब।
अंधेरा सारा कहीं दूर सरकने लगा॥
चिडियाँ कहीं डाली पर बैठकर गाती।
वह सुरताल मन मोहित करने लगा॥
कलियाँ फूल बनकर खिलने लगी।
आलम सारा बनठन के झुमने लगा॥
दिल में सुकुन सा महसूस करता हूँ।
ये तराना नस में लहू बन समाने लगा॥
कुदरत का खेल देख आँखे भर आती।
देख लीला उसके सामने सिर झुकने लगा॥
–डॉ. सुनील परीट बेलगांव कर्नाटक