अफ़वाह
रघु तो बस कमाता था
मुशकिल से बच्चों को पालता था
जाने किसने अफ़वाह फैला दी गांव में
जैसे आग लगा दी रघु की ज़िन्दगी की राह में
दिन रात वो तो मेहनत से जीता था
कुसूर जाने क्या लगाया था उस पर
शान्त जीवन को अंगार बनाया था फिर
रघु क्या जानता था झूठ का काम चलेगा
उसकी सच्चाई को कोई यूंही कुचलेगा
इल्ज़ाम तो देश द्रोह का आया था
उसके नाम झूठा पैगाम आया था
सेठ का मन इक दिन बेइमान हो जाएगा
न जानता था अपने कुकर्म छुपाने को,
नाम उसका धर जाएगा
जिस सेठ के खेतों में दिन रात पसीना बहाता था
न पता था उसका इमान यूं डगमगाता था
अपने गौरख धंधे छुपाने को, खेतों में बारूद छुपाया था
खुद बचने की खातिर बस रघु को फंसाया था
सारे गांव में रघु को देशद्रोही बताया था
बारूद सरहद पार बेचता है सुनाया था
रघु को बिन करनी की सज़ा मिल रही थी
सबको विशवास वो दिला रहा था
ऐसा नहीं हूँ मैं रो रोकर समझा रहा था
गरीब की बात मुशकिल से कोई समझता है
उनको तो इंसाफ भी कँहा जल्दी मिलता है
सलाखों के पीछे रघु अब तो रोता था
इक अफ़वाह से सारा गांव उसको मुजरिम समझता था।।।
कामनी गुप्ता ***