बरखा की बूंदें
बरखा की झरमर बूंदो की
रूनझुन सी आहट सुन कर
यूं लगा जैसे सुरीले से साज़ पर
मीठी सी तान छेड़ रही है धरा
फूल पल्लव यूं मुस्काने लगे हैं जैसे
दबी सी कोई ख्वाहिश पूरी हो
धानी चुनर ओढ़ कर यूं नाचती है प्रकृति
जैसे गौरी प्रियतम से मिलने जाती है
नन्हीं बूंदे धरा पर यूं छपछैया करती है
जैसे बाल गोपाल अठखेलियां करते हैं
सब और आनंद ही आनंद है लेकर आई
ये बारिश की झरमर झरमर बूंदें
— लीना खत्री