कविता

वो माँ तेरा आखि़री ख्वा़ब…

वो आखि़री रात और वो माँ तेरा आखि़री ख्वा़ब
आज भी रह-रह कर कर झंझलाता है
तेरी खामोशी, वो तेरे अनकहे शब्द
और तेरा प्यार भरा हाथ
न जाने आँखो मे कितने सवाल भर गया
तेरे आशीष मे फूलों की महक थी
तो खामोशी मे कांटो की चुभन
क्या सोचूँ क्या समझूँ
विचलित हो उठा मन
ढूढ़ने निकली, सवालो के जवा़ब
अपनों ने दिया कुछ और
इशारा करते कुछ और
मन कहता कुछ और
सब चल दिए अपनी अलग डगर
मैं तो हूँ सभी बातों से बेखब़र
वक्त न जाने किस मोड़ पर ले जाएगा
मेरा नसीब क्या खेल दिखाएगा
क्या खोऊँगी क्या पाऊँगी
हे माँ! तू ही बता
उस ख्वा़ब ने मुझे
खुद से कर दिया लापता
इक बात तो सत्य है माँ
तेरे पावन आशीष को
इक दिन मै अपनी कलम से
सुनहरी अक्षरों से सजाऊँगी

कीर्ति

कीर्ति पाहुजा

Kirti Pahuja C/o Satish Pahuja Kotwali Square Sehore ( M. P. )