गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : महफ़िल मे आके देखिए

तन्हाई छोड़कर महफ़िल मे आके देखिए
बड़ा सुकून है यहाँ आजमाके देखिए।
कई जराग हवाओ ने बुझाएँ हैं मगर
आस का एक दिया दिलमें जलाके देखिए।
ज़ख़्म पर ज़ख़्म हैं लोगो के दुखते दिल में
दिलजलों पर जरा मरहम लगाके देखिए।
छोड़ जाते हैं बीच राह में मुसाफिर सुन
उम्र भर का कोई रिश्ता निभाके देखिए।
गैर से पूछते हो क्यों मेरे हालत सनम
सब समझ जाओगे जरा पास आके देखिए।
ये जो तन्हाई से हम बात बहुत करते हैं
कभी ख्वाबो में अपने हमको लाके देखिए।
उजाड़ देते हैं तूफ़ान बसी दुनिया सुन
किसीके वास्ते एक घर बनाके देखिए।
छीन लेते हैं खिलौने भी यहाँ मासूमों
मासूम चहरे पर मुस्कान लाके देखिए।
टूट जाएगी ज़िद नाजो अदा की जानिब
किसी की ख़ातिर खुदको मिटाके देखिए।
“जानिब”

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

One thought on “ग़ज़ल : महफ़िल मे आके देखिए

  • विजय गौत्तम

    waaaahhhh

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