अटूट रिश्ता
तुम कुछ कहो या ना कहो
फिर भी तुम्हें ही सुनती हूँ मैं
तुम साथ रहो या ना रहो
फिर भी तुम्हें ही निहारती हूँ मैं
तेरी महकती साँसों में बसू या ना बसू
फिर भी धड़कनों में तेरा नाम बसाती हूँ मैं
तेरी बहकती बातों का हिस्सा रहू या ना रहू
फिर भी लब पर तेरा ही नाम लेती हूँ मैं
तेरे साथ मैं चलु या ना चलू
फिर भी तेरी ही परछाईं लगती हूँ मैं
तेरी जीवनसंगिनी बनू या ना बनू
फिर भी सिंदूर तेरे नाम का लगाती हूँ मैं
………….$..सुवर्णा..$………..
कविता अच्छी है. लेकिन कई शब्दों पर अनुस्वार न लगाना खटकता है.