कविता

कविता : दुआयें

मन की बात बताऊँ
उस बहन को बहुत
सुकून मिलता है
जिसका भाई पापा को
अपना पापा कहकर
उनकी हिफाजत करता है
फिर उसे
मंदिर मंजिल गुरुद्वारे
जाने की जरूरत नही
जानते है
लम्बी उम्र की दुआए
बिन माँगे मिलती है
और
कामयाबी उसके कदम चूमे
बेसाख्ता मुहँ से निकलता है।

कंचन आरजू, इलाहाबाद

कंचन आरजू

कंचन आरजू़ एम.ए. (बी.एड) दिल्ली दूरदर्शन एंकर एवम् आकाशवाणी कम्पेयर इलाहाबाद

One thought on “कविता : दुआयें

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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