ग़ज़ल : मेरा हाल कोई पूछता नहीँ
अच्छा है मेरा हाल कोई पूछता नहीँ
किस दौर से गुजरे हैं हम पुछता नहीँ ।
यूँ रूठ कर बैठे थे मनाएँगे वो हमें
पत्थर का हो गया दिल अब रूठता नहीँ।
ये इश्क़ ज़हर हैं चढ़ जाए जो रगों में
नासूर तो बनता है पर फूटता नहीँ।
कर तो दें आज़ाद यादों से तुम्हें लेकिन
ये प्यार का धागा है जो टूटता नहीँ।
एक बार बेवफ़ाई का दाग़ लग गया
जान देके छुटाने से भी छूटता नहीँ ।
कुछ वक्त है अभी जानिब को रोक लो
दुनिया से जाने वाला कभी लौटता नहीँ ।
“जानिब”