कविता : दीवाली में दीप अली के रमजानो में राम
दीवाली में दीप अली के रमजानो में राम
इतना सुंदर भाई चारा क्यों करते बदनाम।
कहने को तो भेष अलग है देह सभी की आम
हिन्दू घर में अल्ला बसते मुस्लिम घर में श्याम।
फिर क्यों हम सब करे बटवारा ये दाया ये वाम
सूरज, चन्दा, पहाड़, नदिया, सागर सबके नाम।
रेलगाडी, बस और हवाई जहाज मिलते सबरे दाम
फेक्ट्री, कारखाने, सरकारी ऑफिस में करते सब काम।
छड़ भंगुर है जीवन अपना मत झगड़ो तुम आम
फिर अल्लाह घर होली खिल है ईद मने घनश्याम।
— कवि दीपक गांधी
आपकी ग़ज़ल गाँधीगीरी के लिए ठीक है, पर धरातल पर यह सच नहीं है. किसी मुसलमान के घर में श्याम नहीं मिल सकते. अगर ऐसा होता तो समस्या ही क्या थी?