वाचिक राधा छंद
विधा — वाचिक राधा छन्द, मापनी —2122 2122 2122 2
फिर चली है आज आँधी, जुल्फ लहराई।
हुश्न हाबी हो रहा है, चाह चितराई।
देखना इन बादलों को, ये बरसते हैं।
भीग ना जाये दया मन, जो लहरते हैं॥
चल पड़ी है आज पूर्वी, पवन सुखदाई।
शोर भी करने लगी है, ठंड पुरवाई।
हौसले को दे रही है, ज़ोर की झपकी।
दिल दिवाना हो रहा है, पा रहा भभकी॥
चल पड़ूँ यदि मैं डगर पर, जो नहीं मेरी।
लौट कर जाए कहाँ पर, चाह चित तेरी।
मन बहक भौंरा निराला, पुष्प खिलते हैं।
हर कली हर डाल पर ये, जा विचरते हैं॥
हम भला कैसे उड़ेंगे, बिन परा पांती।
लौट आ अपनी जगह पर, ले उडी जाती।
आदमी में आदमी का, ही हुनर होता
मत उड़ा इस आदमी को, दिल जला रोता॥
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी
बढ़िया छंद !
सादर ध्नयवाद आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी