कविता

कविता : प्रेम

प्रेम और सत्य
दोनों ही ढाई अक्षर के
शब्द हैं…
कितने सुन्दर
कितने पवित्र हैं ये
शब्द,
जो ह्रदय से अपनाले
सुंदरता की मूरत
बन जाता है
और
सत्य की राह पे
चल कर
प्रेम को वह पाता है,
फिर भी दो अक्षर का शब्द
झूठ….
ढाई अक्षर के इस शब्द को
पीस जाता है
झूठ तो फिर झूठ है
प्रेम इसमें कहां समाता है,
प्रेम की इस डोरी में
बंध कर
मनुष्य जीना सीख जाता है,
डगर प्रेम की
उबड़- खाबड़
कठिनाई की राह है यह
सत्य की पगडण्डी पर
चल कर
प्रेम रतन धन पाता है,
प्रेम झूठ का साथी
नहीं है
सत्य इसकी अभिलाषा है
झूठ चाहे कितना भी
बड़ा हो
सत्य पर ही प्रेम
टिक पाता है,
आओ “सीमा” प्रेम करें हम
कृष्ण की डोरी बन जायें
राधे की इस परम्परा से
कृष्ण भक्ति में हम रम जायें।

— सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)

One thought on “कविता : प्रेम

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी सीमा जी, अत्यंत सुंदर कविता के लिए शुक्रिया.

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