लघुकथा

लघु कथा : बच्चे मन के सच्चे ही होते हैं

मेरे बेटे का एक ही सपना है क्रिकेटर बनना और अपने सपने के प्रति बडा लगन और इमानदारी से समर्पित भी है। शहर के ही एक एकेडमी मे ट्रेनिंग लेता है और उसी एकेडमी की तरफ से टूर्नामेंट भी खेलता है । अंडर 14 का सबसे छोटा  खिलाडी है ।
आज उसका सलेक्शन था, स्कूल जाते जाते बडा उत्साहित था । बार बार उसकी की चर्चा कर  रहा था कि उसका आज सलेक्शन है और 16 तारिख से मैच ।  मैने यूंही बोल दिया… कैप्टन को थोडा पटा लेना, तुम्हें जगह मिल जायेगी । उसने बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखा और बोला. ‘ मै मक्खन क्यो लगाऊंगा, मेहनत से सलेक्ट होऊंगा ‘।
अपने 10 साल के बेटे के मुंह से ये बात सुन जितना उस पर गर्व हुआ,  उतना अपनी छोटी सोच पर शर्म कि मै क्या सिखा रही थी अपने बच्चे को । फिर मेरे मुंह से बस यही निकला ‘ शाबास बेटा…  प्राउड आफ यु’ ।
बच्चे कच्चे मिट्टी के घडे ही है…  बिलकुल कोरे,  सच्चे । सोचने की जरूरत हम बड़ों को है कि कहीं बच्चों के नैतिक पतन की जिम्मेदार हमारी यही छोटी छोटी बातें तो नहीं ।

_______ साधना

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)