दोहा गीत : जाग सके तो जाग
हो जायेगा बेसुरा ,तेरा जीवन राग|
मनुज अभी भी वक़्त है ,जाग सके तो जाग||
धरा गगन जल थल पवन ,विटप नदी उद्द्यान|
श्वास श्वास भरते यही ,जन जीवन में प्रान||
कुदरत से मिलता तुझे ,जीवन मधुर पराग|
मनुज अभी भी वक़्त है ,जाग सके तो जाग||
नदी जलाशय पी रहे ,नित दिन दूषित द्रव्य|
धन लोलुपता ने सभी, भुला दिए कर्तव्य||
घूँट घूँट पीकर जहर ,सूखे गुलशन बाग़|
मनुज अभी भी वक़्त है ,जाग सके तो जाग||
श्वास प्रदूषण से घुटे,हरियाली बदहाल|
काट काट जंगल हरे,बुला लिया खुद काल||
कहीं उजाड़े बाढ़ ने ,लील गई या आग|
मनुज अभी भी वक़्त है ,जाग सके तो जाग||
संरक्षण करते सजग , रहना सुजन प्रबुद्ध|
पवन प्रकृति पर्यावरण, रखना शुद्ध विशुद्ध||
लगने मत देना कभी, कुदरत में तू दाग़|
मनुज अभी भी वक़्त है ,जाग सके तो जाग||
— राजेश कुमारी ‘राज’
प्रिय सखी राजेश जी, अत्यंत सुंदर दोहा-गीत के लिए शुक्रिया.
सादर आभार आदरणीया, जयविजय साईट पर नई हूँ धीरे धीरे इसके नियम सीख रही हूँ प्रतिउत्तर में देर हुई इसका खेद है |आगे भी आपका स्नेह मिलता रहेगा मंगल कामनाएँ
बहुत बहुत आभार आदरणीया लीला तिवानी जी .
अच्छा गीत !
सादर आभार आदरणीय .
सादर आभार .