गीत/नवगीत

भोर

स्वप्न सजाये जो पलकों पर,

पूरा उनको, तुम अब कर लो,
भोर भया, मिट गया अँधेरा,
तुम मंजिल को फिर वर लो,

स्वप्न सजाये जो पलकों पर,
पूरा उनको तुम अब कर लो

आलस को त्यागो, बढे चलो,
मन में लोे ठान, दृढ़संकल्प हो
मेहनत के बल पर,जीतना है
लक्ष्य के दूजा, न विकल्प हो,

संघर्ष भरा ये जीवन पथ है,
तपकर सोना,ज्यो निखर लो
स्वप्न सजाये जो पलकों पर,
पूरा उनको तुम अब करलो,

कठिन घडी है,हार न जाना,
करना वही,जो मन में ठाना,
निगाह रखो अर्जुन के जैसी,
लक्ष्य भेद,तुम साध निशाना,

ज्ञान की गंगा बहा धरती पर,
सूरज भांति तम को हर लो,
स्वप्न सजाये जो पलकों पर,
पूरा उनको तुम अब कर लो

— नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”

नवीन श्रोत्रिय 'उत्कर्ष'

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