दोहे : नारी
नारी तू नारायणी, तुझसे जग विस्तार ।
इस जग मे तेरा हुआ , क्यों जीना दुश्वार ॥
गर्भपात करवा रहे , जाना कन्या रूप ।
जीवन तेरा है कठिन, जैसे तपती धूप॥
देवी कहकर पूजते, यहाँ दोमुहे लोग ।
नारी की इज्जत नहीं, करते हैं बस भोग ॥
समय विकट है आ गया, अन्धकार चहु ओर ।
मुंह पर कहते हैं बहन, दिल मे रखते चोर ॥
मां बेटी बीवी बनी, रखती सबका ध्यान ।
इसको ही मिलता नहीं, अपनों से सम्मान ॥3
पाला जिसको प्यार से, जता जता कर हेज ।
उससे पति कुछ यू कहे, लाओ और दहेज ॥
देख नार ही हो गई, दुश्मन उसकी आज ।
जला बहू को मारना, लगता उसका काज ॥
घुट घुट कर जीती रहे, बचा पिता की लाज ।
कैसा दिन है आ गया, खतम हुए सब साज ॥
डोली चढ दुल्हन बनी, चली पिया की राह ।
नहीं मिला सुख कोइ भी , जीवन हुआ तबाह ॥
चलना दूभर हो गया, राह अकेली नार ।
खुद डोली को लूटते, जग मे आज कहार ॥
— अनुपमा दीक्षित मयंक