मुक्तक/दोहा

दोहे : नारी

नारी तू नारायणी, तुझसे जग विस्तार ।
इस जग मे तेरा हुआ , क्यों जीना दुश्वार ॥

गर्भपात करवा रहे , जाना कन्या रूप ।
जीवन तेरा है कठिन, जैसे तपती धूप॥

देवी कहकर पूजते, यहाँ दोमुहे लोग ।
नारी की इज्जत नहीं, करते हैं बस भोग ॥

समय विकट है आ गया, अन्धकार चहु ओर ।
मुंह पर कहते हैं बहन, दिल मे रखते चोर ॥

मां बेटी बीवी बनी, रखती सबका ध्यान ।
इसको ही मिलता नहीं, अपनों से सम्मान ॥3

पाला जिसको प्यार से, जता जता कर हेज ।
उससे पति कुछ यू कहे, लाओ और दहेज ॥

देख नार ही हो गई, दुश्मन उसकी आज ।
जला बहू को मारना, लगता उसका काज ॥

घुट घुट कर जीती रहे, बचा पिता की लाज ।
कैसा दिन है आ गया, खतम हुए सब साज ॥

डोली चढ दुल्हन बनी, चली पिया की राह ।
नहीं मिला सुख कोइ भी , जीवन हुआ तबाह ॥

चलना दूभर हो गया, राह अकेली नार ।
खुद डोली को लूटते, जग मे आज कहार ॥

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - [email protected]