कविता : मैंने तो बस चाहा तुम्हें
मैंने तो बस चाहा तुम्हें
तुमसे हृदयतल से प्रेम किया
जैसे प्रत्येक साधारण स्त्री
करती है अपने स्वप्न पुरुष से
तुमने तो कुछ क्षण के लिए
सिर्फ मेरी कामना ही की
कभी नही चाहा
ना प्रेम किया कभी
मेरे प्रेमी तो नही बन पाए
हां बन गए नियंता
मेरे समस्त भावनाओं के
नियंत्रित करने लगे मेरे मन को
मेरा सुख-दुःख,ख़ुशी-ग़म
हँसना-रोना है सब कुछ
अब नियंत्रण में तुम्हारे
मेरे आँसुओं पर तुम्हारा बस है
और मुस्कान भी निर्भर है
अब तुम्हारी ही इच्छा पर ।।
— सुमन शर्मा
सुन्दर रचना