ओ प्रिये ….
ओ प्रिये!!
तुम कहाँ हो!
बसंती हवाएं चल रही है,
सभी के मन को भा रही है,
सारी कलियां खिल गई है,
विरान जगहों पर रंगोली बन गई है,
•
लेकिन –
सभी जगह पर
मनभावन लिए मधुमास में,
तुम्हारी यादों की परीछाईयाँ दिख रही है,
मकरन्द में सारेपल रतिमय महसूस हो रही है,
प्रकृति के गोद में सर्वत्र उमंग भर गई है,
उमंगों के बीच में तेरी कमियां खल रही है,
•
अब आ जाओ-
सुनहरे पल में पराग लिए,
प्रेम दिवस मनाना है,
रतिमास के समय में साथ रहना है,
बसंती ब्यार में साथ साथ चलना है,
इन फूलों के साथ -साथ चहकना है,
प्रेम दिवस के दिन हमें साथ रहना है।
तुम कहाँ हो!!
ओ प्रिये!!
— रमेश कुमार सिंह