अपना नकाब रुख़ से हटाया न कीजिये
मेरे ज़ख़म की याद मिटाया न कीजिये ।
मुझको मेरा नसीब पढ़ाया न कीजिये ।।
माना कि मुहब्बत से तुझे वास्ता नही ।
यह बात सरे आम बताया न कीजिये ।।
हो आग बुझाने के सलीके से बेखबर ।
पानी में कभी आग लगाया न कीजिए।।
बादल तुझे गुरूर बरसने पे बहुत है ।
सावन मेरा जले तो बुझाया न कीजिये ।।
इल्जाम ज़माने का बेहिसाब है यहां ।
अब रात इस शहर में बिताया न कीजिये ।।
कुछ खास तजुर्बो से सबक आम हो गया ।
जो गिर गया नजर से उठाया न कीजिये ।।
शायद तेरे फरेब की चर्चा बुलन्द है ।
अब कब्र पर चराग जलाया न कीजिये ।।
देखा तुझे तो होश गवाता चला गया ।
अपना नकाब रुख से हटाया न कीजिये ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
सुन्दर गजल
बहुत खूब .