गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपने हालात से बेखबर आदमी,
ना चैन पाए कहीं बेसबर आदमी

और पैसे कमाने का लालच लिए,
गांव से आ गया है शहर आदमी

जीने की चाह में मरता है रोज़
रोज़ पीता है थोड़ा ज़हर आदमी,

आज जिसकी किसी को जरूरत नहीं,
बासी अखबार की इक खबर आदमी

ख्वाब जितने भी थे ना मुकम्मल हुए,
हसरतों का है अधूरा सफर आदमी

कितने अरमान सीने में करके दफन,
बन गया खुद ही अपनी कबर आदमी

मैंने देखा है मगरिब से मशरिक तलक,
मुझको आया नहीं कहीं नज़र आदमी

भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]