मुक्तक : फितरतबाज पड़ोसी
साँप पाल कर बना संपेरा, काला दिवस मनाता है
पाक नाम नापाक इरादा, कैसे पाक कहाता है
दशहत गर्दो का आका बन, फिदरत बाज पड़ोसी ये
उत्पात मचाता सदा पाक, आतंक शहीद बताता है
कश्मीरी आतंकी का जो,मदद रात दिन करते हैं
काला-दिवस मनाते जो खुद, ही आफ़त मे मरते हैं
खाका रोज बना करके नित,आका तक पहुँचाते वे
राग -द्वेष अरु धर्म वाद पे,कायर जीते रहते हैं
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
प्रिय राजकिशोर भाई जी, सच कहा, आतंकी और शहीद में फ़र्क ही नहीं माना जा रहा है. अति सुंदर व सार्थक सृजन के लिए आभार.
आदरणीया बहन जी प्रणाम आपका स्नेह मेरा संबल सदैव कृपा दृष्टि बनाएँ रहें आपकी छत्र छाया मै साहित्य सृजन करता रहूँ, यही मेरी आकांक्षा है