मुक्तक/दोहा

मुक्तक : फितरतबाज पड़ोसी

साँप पाल कर बना संपेरा, काला दिवस मनाता है
पाक नाम नापाक इरादा, कैसे पाक कहाता है
दशहत गर्दो का आका बन, फिदरत बाज पड़ोसी ये
उत्पात मचाता सदा पाक, आतंक शहीद बताता है

कश्मीरी आतंकी का जो,मदद रात दिन करते हैं
काला-दिवस मनाते जो खुद, ही आफ़त मे मरते हैं
खाका रोज बना करके नित,आका तक पहुँचाते वे
राग -द्वेष अरु धर्म वाद पे,कायर जीते रहते हैं

राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “मुक्तक : फितरतबाज पड़ोसी

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकिशोर भाई जी, सच कहा, आतंकी और शहीद में फ़र्क ही नहीं माना जा रहा है. अति सुंदर व सार्थक सृजन के लिए आभार.

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीया बहन जी प्रणाम आपका स्नेह मेरा संबल सदैव कृपा दृष्टि बनाएँ रहें आपकी छत्र छाया मै साहित्य सृजन करता रहूँ, यही मेरी आकांक्षा है

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