हे धरती माता पापियों को , क्यों देती तू जन्म
हे धरती माता पापियों को, क्यों देती तू जन्म
खून की होली खेल रहे है जो, कैसे होगा अंत
द्वापर मे सत्यभामा बन कर, धरा जो धरती रूप
नरकासुर से मुक्त किया माँ, कैसा भव्य स्वरूप
देव और दानव सब काँपे, मनुज की क्या औकात
सागर कंटक आग का घेरा, द्वारपाल बलवान
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
प्रिय राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर व सार्थक सृजन के लिए आभार.
बहन जी प्रणाम आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के के लिए आभार