ग़ज़ल
प्रेम तेरा सच्चा है दिल मेरा बच्चा है
प्यार की कसोटी में अभी जरा कच्चा है।
वेवफाई की नही वो नियत का सच्चा है
नफरतो से कोसो दूर हालातो का गुच्छा है।
रखता है मान सभी इतना न वो टुच्चा है
करता न भेद कभी चरित्र से न लुच्चा है।
पीपल का पत्ता नही हाल ही फड़क जाय
छाँव है वो बरगद की आसरा भी अच्छा है।
झूठ से न वास्ता सच्चाई ही रास्ता
मन से अमीर है दिल का वो सच्चा है।
— दीपक गांधी