दोहे
राजनीति के खेल में, नारी का अपमान।
अपशब्दों ने फिर यहाँ, मार लिया मैदान।।
तू मुझको दो चार कह, मैं तुझको दो चार।
रहे मीडिया में बने, फ्री में हुआ प्रचार।।
पॉलिटिक्स में फेम ले , गाली देना सीख।
मुख्य ख़बर बन जायगी, गला फाड़कर चीख।
मँहगी बिकती गालियां, सस्ता शिष्टाचार।
राजनीति का हो रहा, ऐसा कुछ व्यापार।।
पिछली बातें भूलकर, फिर दे देती वोट।
जनता भोली इस तरह, फिर फिर खाती चोट।।
पहले थे ड्रग माफ़िया, फिर गुंडों के बाप।
“माननीय” हो ही गए, धीरे-धीरे आप।।
:प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’